About us

Join us FREE!

कृष्ण भक्त मीरा

Blog by Deepika Singh connectclue-author-image

All > Story & poetry > मीराबाई की कहानी

3 likes

Please login to like this article.

connectclue-linkedin-share

मीराबाई (1498-1546) 
सोलहवीं शताब्दी की एक कृष्ण भक्त और
कवियत्री थीं।उनकी कविता कृष्ण भक्ति के रंग में रंग कर और गहरी हो जाती है। मीरा बाई ने कृष्ण भक्ति के स्फुट पदों की रचना की है। मीरा कृष्ण की भक्त हैं। उनके गुरु रविदास जी थे तथा रविदास जी के गुरु रामानंद जी थे



मीराबाई का जन्म सन 1498 ई. में पाली के कुड़की गांव में दूदा जी के चौथे पुत्र रतन सिंह के घर हुआ। ये बचपन से ही कृष्णभक्ति में रुचि लेने लगी थीं। मीरा का विवाह मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार में हुआ। उदयपुर के महाराजा भोजराज इनके पति थे जो मेवाड़ के महाराणा सांगा के पुत्र थे। विवाह के कुछ समय बाद ही उनके पति का देहान्त हो गया। पति की मृत्यु के बाद उन्हें पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया, किन्तु मीरा इसके लिए तैयार नहीं हुईं। मीरा के पति का अंतिम संस्कार चित्ततोड़ में मीरा की अनुपस्थिति में हुआ। पति की मृत्यु पर भी मीरा माता ने अपना श्रृंगार नहीं उतारा, क्योंकि वह गिरधर को अपना पति मानती थी
वे विरक्त हो गईं और साधु-संतों की संगति में हरिकीर्तन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगीं। पति के परलोकवास के बाद इनकी भक्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई। ये मंदिरों में जाकर वहाँ मौजूद कृष्णभक्तों के सामने कृष्णजी की मूर्ति के आगे नाचती रहती थीं। मीराबाई का कृष्ण-भक्ति में नाचना और गाना राज परिवार को अच्छा नहीं लगता था। उन्होंने कई बार मीराबाई को विष देकर मारने की कोशिश की। घर वालों के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान होकर वह द्वारका और वृन्दावन गई। वह जहाँ जाती थी, वहाँ लोगों का सम्मान मिलता था। लोग उन्हें देवी के जैसा प्यार और सम्मान देते थे। मीरा का समय बहुत बड़ी राजनैतिक उथल-पुथल का समय रहा है। बाबर का हिंदुस्तान पर हमला और प्रसिद्ध खानवा का युद्ध उसी समय हुआ था। इन सभी परिस्थितियों के बीच मीरा का रहस्यवाद और भक्ति की निर्गुण मिश्रित सगुण थे।
मेरी दृष्टि में श्री राधा रानी के बाद भगवान श्री कृष्ण की कोई प्रेयसी है तो सिर्फ मीरा बाई ही है। गोपियाँ भी प्रेम की पराकाष्ठा है लेकिन मीरा बाई तो इस कलयुग में भगवान की पत्नी कहलाती है।

संत महात्मा बताते हैं कि मीराबाई श्री कृष्ण के समय की एक गोपी थी।
भगवान कृष्ण को पाने वाले लोग कहते हैं हमें भगवान मिलते नहीं हैं, भगवान हमें दर्शन देते नहीं हैं जबकि मीरा बाई जी को देते हैं
मीरा बाई जी कहती हैं? मेरे तो गिरधर गोपाल, दुसरो न कोय।
हम सभी भगवान से कह देते हैं प्रभु आप हमारे हैं लेकिन इसकी दूसरी पंक्ति हम नहीं कह पाते कि प्रभु आपके अलावा हमारा और कोई भी नहीं है। सिर्फ आप ही हमारे हैं। हम पत्नी को भी अपना माने बैठे हैं, पति को भी, बच्चों को भी, गर्लफ्रेंड, बॉयफ्रेंड, और न जाने किस किस को अपना कहते हैं। क्या वे वास्तव में अपने हैं?
मीरा बाई ने तो कह दिया मेरे तो सिर्फ गिरधर गोपाल जी हैं। दूसरा कोई भी नहीं। जिस दिन हमारे ह्रदय में इस तरह सच्चा भाव आएगा यहीं मानना भगवान खुद ही आपको अपनी पलकों पर बैठ लेंगे।
मीराबाई की भक्ति संपादित करें
भारत अपनी संस्कृति के लिए पूरे विश्व में यूं ही इतना विख्यात नहीं है. भारतभूमि पर ऐसे कई संत और महात्मा हुए हैं जिन्होंने धर्म और भगवान को रोम-रोम में बसा कर दूसरों के सामने एक आदर्श के रुप में पेश किया है. मोक्ष और शांति की राह को भारतीय संतों ने सरल बना दिया है. भजन और स्तुति की रचनाएं कर आमजन को भगवान के और समीप पहुंचा दिया है. ऐसे ही संतों और महात्माओं में मीराबाई का स्थान सबसे ऊपर माना जाता है. मीराबाई के बालमन में कृष्ण की ऐसी छवि बसी थी कि यौवन काल से लेकर मृत्यु तक मीरा बाई ने कृष्ण को ही अपना सब कुछ माना.  बचपन से ही वे कृष्ण-भक्ति में रम गई थीं. 



मीराबाई का कृष्ण प्रेम बचपन की एक घटना - 

की वजह से अपने चरम पर पहुंचा था. मीराबाई के बचपन में एक दिन उनके पड़ोस में किसी बड़े आदमी के यहां बारात आई थी. सभी स्त्रियां छत से खड़ी होकर बारात देख रही थीं. मीराबाई भी बारात देख रही थीं, बारात को देख मीरा ने अपनी माता से पूछा कि मेरा दूल्हा कौन है? इस पर मीराबाई की माता ने कृष्ण की मूर्ति के तरफ इशारा कर कह दिया कि वही तुम्हारे दुल्हा हैं. यह बात मीरा बाई के बालमन में एक गांठ की तरह बंध गई. बाद में मीराबाई का विवाह महाराणा सांगा के पुत्र भोजराज से कर दिया गया. इस शादी के लिए पहले तो मीराबाई ने मना कर दिया पर जोर देने पर वह फूट-फूट कर रोने लगीं और विदाई के समय कृष्ण की वही मूर्ति अपने साथ ले गईं जिसे उनकी माता ने उनका दुल्हा बताया था. मीराबाई ने लज्जा और परंपरा को त्याग कर अनूठे प्रेम और भक्ति का परिचय दिया  मीराबाई कृष्ण की भक्ति में इतना खो जाती थीं कि भजन गाते-गाते वह नाचने लगती थीं. मीरा की महानता और उनकी लोकप्रियता उनके पदों और रचनाओं की वजह से भी है. ये पद और रचनाएं राजस्थानी, ब्रज और गुजराती भाषाओं में मिलते हैं. हृदय की गहरी पीड़ा, विरहानुभूति और प्रेम की तन्मयता से भरे हुए मीरा के पद हमारे देश की अनमोल संपत्ति हैं.  आंसुओं से गीले ये पद गीतिकाव्य के उत्तम नमूने हैं.  मीराबाई ने अपने पदों में श्रृंगार और शांत रस का प्रयोग विशेष रुप से किया है. भावों की सुकुमारता और निराडंबरी सहजशैली की सरसता के कारण मीरा की व्यथासिक्त पदावली बरबस सबको आकर्षित कर लेती हैं.  मीराबाई ने चार ग्रंथों की रचना की .बरसी का मायरा, गीत गोविंद टीका, राग गोविंद और राग सोरठ के पद मीरबाई द्वारा रचे गए ग्रंथ हैं. इसके अलावा मीराबाई के गीतों का संकलन "मीराबाई की पदावली' नामक ग्रन्थ में किया गया है. कहा जाता है कि मीराबाई रणछोड़ जी में समा गई थीं. मीराबाई की मृत्यु के विषय में किसी भी तथ्य का स्पष्टीकरण आज तक नहीं हो सका है. मीराबाई ने भक्ति को एक नया आयाम दिया है. एक ऐसा स्थान जहां भगवान ही इंसान का सब कुछ होता है. दुनिया के सभी लोभ उसे मोह से विचलित नहीं कर सकते. एक अच्छा-खासा राजपाट होने के बाद भी मीराबाई वैरागी बनी रहीं. मीराजी की कृष्ण भक्ति एक अनूठी मिसाल रही है.
मीरा के कई पद हिन्दी फ़िल्मी गीतों का हिस्सा भी बने।
वे बहुत दिनों तक वृन्दावन (मथुरा, उत्तर प्रदेश) में रहीं और फिर द्वारिका चली गईं। जहाँ संवत 1560 ई. में वे भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति में समा गईं।



मीराबाई की मृत्यु-
जब उदयसिंह राजा बने तो उन्हें यह जानकर बहुत निराशा हुई कि उनके परिवार में एक महान भक्त के साथ कैसा दुर्व्यवहार हुआ। तब उन्होंने अपने राज्य के कुछ ब्राह्मणों को मीराबाई को वापस लाने के लिए द्वारका भेजा। जब मीराबाई आने को राजी नहीं हुईं तो ब्राह्मण जिद करने लगे कि वे भी वापस नहीं जायेंगे। उस समय द्वारका में ?कृष्ण जन्माष्टमी? आयोजन की तैयारी चल रही थी। मीराबाई ने कहा कि वे आयोजन में भाग लेकर चलेंगी। उस दिन उत्सव चल रहा था। भक्तगण भजन में मग्न थे। मीरा नाचते-नाचते श्री रणछोड़राय जी के मन्दिर के गर्भग्रह में प्रवेश कर गईं और मन्दिर के कपाट बन्द हो गये। जब द्वार खोले गये तो देखा कि मीरा वहाँ नहीं थी। उनका चीर मूर्ति के चारों ओर लिपट गया था और मूर्ति अत्यन्त प्रकाशित हो रही थी। मीरा मूर्ति में ही समा गयी थीं। मीराबाई का शरीर भी कहीं नहीं मिला। उनका उनके प्रियतम प्यारे से मिलन हो गया था।
जिन चरन धरथो गोबरधन गरब- मधवा- हरन।।
दास मीरा लाल गिरधर आजम तारन तरन

🙏


All review comments

Behtareen
Nicely explained
connectclue-linkedin-share

More articles:


Recent lost & found:


Login for enhanced experience

connectclue-tick Create and manage your profile

connectclue-tick Refer an author and get bonus Learn more

connectclue-tick Publish any lost and found belongings

connectclue-tick Connect with the authors & add your review comments

connectclue-tick Join us for Free to advertise for your business or Contact-us for more details

connectclue-tick Join us for Free to publish your own blogs, articles or tutorials and get your Benefits

connectclue-login

Back to top