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शरद पूर्णिमा

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All > शरद पूर्णिमा > शरद पूर्णिमा का महत्व

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आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। 

शरद पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ गरुड़ पर सवार होकर पृथ्वी लोक पर भ्रमण के लिए आती हैं। इस दिन मां लक्ष्मी घर-घर जाकर भक्तों पर कृपा बरसाती हैं। इस दिन प्रकृति मां लक्ष्मी का स्वागत करती हैं। कहते हैं कि इस रात को देखने देवतागण भी स्वर्ग से पृथ्वी पर आते हैं। 


धार्मिक कथाओं के अनुसार द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने शरद पूर्णिमा की रात में ही गोपियों के साथ रासलीला रचाई थी। मान्यता है कि आज भी शरद पूर्णिमा की रात्रि में श्रीकृष्ण गोपियों के साथ वृंदावन में रासलीला रचाते हैं।

सभी गोपियां कृष्ण जी को अपने पति के रूप में पाना चाहती थी ।
शरद पूर्णिमा के दिन कृष्ण और राधा जी की पूजा की जाती है इस दिन सभी प्रेमी और प्रेमिका चंद्रमा के दर्शन कर अपनी जोड़ी सलामत रहने की प्रार्थना करते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण की सभी लीलाओं को रास के नाम से जाना जाता है लेकिन केवल शरद पूर्णिमा की रात के नृत्य को महारास की पदवी प्राप्त है। बताया जाता है कि प्रेम और काम के देवता कामदेव की हठ पर ही भगवान श्रीकृष्ण ने महारास का आयोजन किया था। दरअसल कामदेव को अपनी शक्तियों पर बहुत घमंड था कि वह किसी को भी काम के प्रति आसक्त कर सकता है।
शिव को पार्वती की ओर किया था आकर्षित

दरअसल सती की मृत्यु के बाद भगवान शिव संसार की माया से मुक्त होकर लीन में बैठ गए थे। तब देवताओं के कहने पर ही कामदेव ने अपने बाण से ही माता पार्वती की ओर आकर्षित किया था। ध्यान भंग होने से भगवान शिव ने तीसरी आंख खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया। लेकिन कामदेव की पत्नी रति के विनती सुनकर कामदेव को फिर से अस्तित्व प्रदान किया।

कामदेव के घमंड को तोड़ने के लिए भगवान कृष्ण ने वृंदावन के जंगलों में महारास की। सबसे पहले कृष्ण ने बांसुरी से सभी गोपियों को बुलाया। सभी गोपियां आ भी गईं लेकिन वे सभी वासना रहित थीं। उनके मन सिर्फ कृष्ण को पाने की इच्छा थी। भगवान कृष्ण ने हजारों रूप रखकर सभी गोपियों के साथ नृत्य किया लेकिन एक क्षण के लिए भी मन में वासना का प्रवेश नहीं किया।


निधिवन (वृन्दावन) में तुलसी के पेड़ हैं जोड़ों में
निधिवन में तुलसी के पेड़ हैं और ये सामान्य तुलसी के पौधों जैसे नहीं हैं। तुलसी के इन पेड़ों की शाखाएं जमीन की ओर आती हैं। सबसे खास बात यह है कि यहां तुलसी के पेड़ जोड़ों में हैं। मान्यता है कि जब श्रीकृष्ण निधिवन में गोपियों संग रास रचाते हैं तो ये सभी पेड़ गोपियां बन जाती हैं और सुबह होते ही फिर तुलसी के पेड़ में बदल जाती हैं।

शरद पूर्णिमा पर मां महालक्ष्मी की विधिवत पूजा की जाती है। शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की रोशनी अमृत समान होती है। शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की रोशनी में बैठने से शारीरिक रोगों से मुक्ति मिलती है। श्वांस संबंधी बीमारी दूर होती है। शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्र दर्शन करने से नेत्र संबंधी रोग दूर हो जाते हैं। इस रात्रि खीर का भोग लगाकर आसमान के नीचे रखी जाती है। मां लक्ष्मी का पूजन करने के बाद चंद्र दर्शन किया जाता है। शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस रात्रि में जागरण करने और मां लक्ष्मी की उपासना से धन-धान्य की प्राप्ति होती है। मां लक्ष्मी की पूजा के दौरान उन्हें गुलाबी रंग के फूल और इत्र, सुंगध अर्पित करें। श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ, कनकधारा स्त्रोत का पाठ करें। इस दिन माता लक्ष्मी के साथ चंद्रदेव की विशेष पूजा की जाती है। मां लक्ष्मी को सफेद मिठाई अर्पित करें। शाम को श्रीराधा-कृष्ण की पूजा करें। उन्हें गुलाब के फूलों की माला अर्पित करें। मध्य रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य दें। शरद पूर्णिमा पर सात्विक भोजन करें। शरद पूर्णिमा की रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में राधा और गोपियों के साथ महारास रचाया था। इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है।

हम सभी शरद पूर्णिमा को बहुत ही उत्साह से मनाते हैं।


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