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प्राणायाम को आम तौर पर सांस नियंत्रण की प्रक्रिया समझा जाता है। प्राणायाम में किए जाने वाले अभ्यास को देख कर यह ठीक ही लगता है, परंतु इसके पीछे सच बात कुछ और ही है। प्राणायाम दो शब्दों के मेल से बना है: प्राण और आयम। प्राण का मतलब महत्वपूर्ण ऊर्जा या जीवन शक्ति है। वह शक्ति जो सभी चीजों में मौजूद है, चाहे वो जीवित हो या निर्जीव। प्राणायाम श्वास के माध्यम से यह ऊर्जा शरीर की सभी नाड़ियों में पहुँचाती है। यम शब्द का अर्थ है नियंत्रण और योग में इसे विभिन्न नियमों या आचार को निरूपित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। मगर प्राणायाम शब्द में प्राण के साथ यम नहीं आयम की संधि की गयी है। आयम का मतलब है एक्सटेंशन या विस्तार करना। तो इसलिए प्राणायाम का सही मतलब है प्राण का विस्तार करना।

प्राणायाम के प्रकार -
प्राणायाम के कुछ प्रमुख प्रकार हैं:

नाड़ी शोधन प्राणायाम
शीतली प्राणायाम
उज्जायी प्राणायाम
कपालभाती प्राणायाम
डिग्र प्राणायाम
भस्त्रिका प्राणायाम
बाह्य प्राणायाम
भ्रामरी प्राणायाम
उद्गित प्राणायाम
अनुलोम - विलोम प्राणायाम
अग्निसार क्रिया

प्राणायाम से अवसाद का इलाज भी किया जा सकता है।
प्राणायाम के अभ्यास से स्थिर मन और दृढ़ इच्छा-शक्ति प्राप्त होती है।
इसके अलावा नियमित रूप से प्राणायाम करने से लंबी आयु प्राप्त होती है।
प्राणायाम आपके शरीर में प्राण शक्ति बढ़ाता है।
अगर आपकी कोई नाड़ी रुकी हुई हो तो प्राणायाम उसको खोल देता है।
प्राणायाम मन को स्पष्टता और शरीर को सेहत प्रदान करता है।
शरीर, मन, और आत्मा में प्राणायाम करने से तालमेल बनता है।

प्राणायाम को सरल बनाने की आवश्यकता क्यों है? 

योग में उल्लेखित नियमित प्राणायाम पूरी तरह स्वस्थ लोगों के लिए हैं। इसमें योग की अनिवार्यताएं हैं - यम, नियम और आसन। इसका मतलब है, नियमित प्राणायाम को आहार और मन के प्रतिबंधों का पालन करने और आसन में उचित प्रशिक्षण पाने की आवश्यकता है। जैसा कि स्वामी विवेकानंद कहते थे, "एक स्वस्थ शरीर एक स्वस्थ मन की पूर्वापेक्षा है"। प्राणायाम के किसी भी प्रकार की विधि बिना किसी प्रशिक्षण के या शुरुआत में कई लोगों के लिए कठिन होती है। यदि प्राणायाम अपनी क्षमता से अधिक किया जाए तो वह चक्कर आने और साँस लेने में दिक्कत का कारण बन सकता है। 


प्राणायाम के नियम -
प्राणायाम कब करें या प्राणायाम करने का सही समय क्या है?
प्राणायाम सुबह के समय खाली पेट करें। प्राणायाम ताजा हवा और ऊर्जा से मन और शरीर को भरने का तरीका है। इसलिए, सुबह इसके लिए सही समय है। प्राणायाम करने से पहले स्नान अवश्य करें। स्नान के बाद हम ताजा महसूस करते हैं तो यह प्राणायाम के लाभों को पूर्ण रूप से महसूस करने में मदद करता है। ऐसा करने से आपके तन और मन में प्राण पूरी तरह से भर जाते हैं।

प्राणायाम कहां करें या प्राणायाम करने का सही स्थान क्या है?
आप जहाँ प्राणायाम करें उस जगह में पर्याप्त हवा और प्रकाश होने चाहिए। ताज़ी हवा बहुत ही आवश्यक है, तो अगर किसी कमरे में प्राणायाम कर रहें हो तो खिड़कियां खुली रखें वरना अक्सर यह चक्कर आने का कारण बनता है। जगह शोर मुक्त होनी चाहिए ताकि आप अपने अभ्यास पर ध्यान दे सकें।

प्राणायाम करने के लिए कैसे बैठें?
फर्श पर चटाई या योगा मैट बिछा कर किसी भी ध्यान करने के आसान में बैठ जायें जैसे की पद्मासन, सुखासन, सिद्धासन या वज्रासन। अगर आपको कोई भी समस्या हो या जमीन पर बैठने में परेशानी हो तो एक कुर्सी पर बैठ सकते हैं।

प्राणायाम करते समय आंखें खुली हों या बंद?
आखें बंद रखें। हो सके तो दृष्टि को नाक की नोक पर केंद्रित करें और फिर आखें बंद करें। अगर नाक की नोक पर दृष्टि केंद्रित करने या रखने में परेशानी हो तो ऐसा ना करें।

Post updated on:  Nov 7, 2021 11:14:51 PM

योग क्या है? - What's Yoga in Hindi?


योग सही तरह से जीने का विज्ञान है और इस लिए इसे दैनिक जीवन में शामिल किया जाना चाहिए। यह हमारे जीवन से जुड़े भौतिक, मानसिक, भावनात्मक, आत्मिक और आध्यात्मिक, आदि सभी पहलुओं पर काम करता है। योग का अर्थ एकता या बांधना है। इस शब्द की जड़ है संस्कृत शब्द युज, जिसका मतलब है जुड़ना। आध्यात्मिक स्तर पर इस जुड़ने का अर्थ है सार्वभौमिक चेतना के साथ व्यक्तिगत चेतना का एक होना। व्यावहारिक स्तर पर, योग शरीर, मन और भावनाओं को संतुलित करने और तालमेल बनाने का एक साधन है। यह योग या एकता आसन, प्राणायाम, मुद्रा, बँध, षट्कर्म और ध्यान के अभ्यास के माध्यम से प्राप्त होती है। तो योग जीने का एक तरीका भी है और अपने आप में परम उद्देश्य भी।

योग सबसे पहले लाभ पहुँचाता है बाहरी शरीर (फिज़िकल बॉडी) को, जो ज्यादातर लोगों के लिए एक व्यावहारिक और परिचित शुरुआती जगह है। जब इस स्तर पर असंतुलन का अनुभव होता है, तो अंग, मांसपेशियां और नसें सद्भाव में काम नहीं करते हैं, बल्कि वे एक-दूसरे के विरोध में कार्य करते हैं।

बाहरी शरीर (फिज़िकल बॉडी) के बाद योग मानसिक और भावनात्मक स्तरों पर काम करता है। रोज़मर्रा की जिंदगी के तनाव और बातचीत के परिणामस्वरूप बहुत से लोग अनेक मानसिक परेशानियों से पीड़ित रहते हैं। योग इनका इलाज शायद तुरंत नहीं प्रदान करता लेकिन इनसे मुकाबला करने के लिए यह सिद्ध विधि है।


पिछली सदी में, हठ योग (जो की योग का सिर्फ़ एक प्रकार है) बहुत प्रसिद्ध और प्रचलित हो गया था। लेकिन योग के सही मतलब और संपूर्ण ज्ञान के बारे में जागरूकता अब लगातार बढ़ रही है।

योग के लाभ -

शारीरिक और मानसिक उपचार योग के सबसे अधिक ज्ञात लाभों में से एक है। यह इतना शक्तिशाली और प्रभावी इसलिए है क्योंकि यह सद्भाव और एकीकरण के सिद्धांतों पर काम करता है।

योग अस्थमा, मधुमेह, रक्तचाप, गठिया, पाचन विकार और अन्य बीमारियों में चिकित्सा के एक सफल विकल्प है, ख़ास तौर से वहाँ जहाँ आधुनिक विज्ञान आजतक उपचार देने में सफल नहीं हुआ है। एचआईवी (HIV) पर योग के प्रभावों पर अनुसंधान वर्तमान में आशाजनक परिणामों के साथ चल रहा है। चिकित्सा वैज्ञानिकों के अनुसार, योग चिकित्सा तंत्रिका और अंतःस्रावी तंत्र में बनाए गए संतुलन के कारण सफल होती है जो शरीर के अन्य सभी प्रणालियों और अंगों को सीधे प्रभावित करती है। 


अधिकांश लोगों के लिए, हालांकि, योग केवल तनावपूर्ण समाज में स्वास्थ्य बनाए रखने का मुख्य साधन हैं। योग बुरी आदतों के प्रभावों को उलट देता है, जैसे कि सारे दिन कुर्सी पर बैठे रहना, मोबाइल फोन को ज़्यादा इस्तेमाल करना, व्यायाम ना करना, ग़लत ख़ान-पान रखना इत्यादि।

इनके अलावा योग के कई आध्यात्मिक लाभ भी हैं। इनका विवरण करना आसान नहीं है, क्योंकि यह आपको स्वयं योग अभ्यास करके हासिल और फिर महसूस करने पड़ेंगे। हर व्यक्ति को योग अलग रूप से लाभ पहुँचाता है। तो योग को अवश्य अपनायें और अपनी मानसिक, भौतिक, आत्मिक और अध्यात्मिक सेहत में सुधार लायें।

योग के नियम - Rules of Yoga in Hindi
 आप यह कुछ सरल नियमों का पालन करेंगे, तो अवश्य योग अभ्यास का पूरा लाभ पाएँगे:

किसी गुरु के निर्देशन में योग अभ्यास शुरू करें।
सूर्योदय या सूर्यास्त के वक़्त योग का सही समय है।
योग करने से पहले स्नान ज़रूर करें।
योग खाली पेट करें।
आरामदायक सूती कपड़े पहनें।
तन की तरह मन भी स्वच्छ होना चाहिए - योग करने से पहले सब बुरे ख़याल दिमाग़ से निकाल दें।
किसी शांत वातावरण और सॉफ जगह में योग अभ्यास करें।
अपना पूरा ध्यान अपने योग अभ्यास पर ही केंद्रित रखें।
योग अभ्यास धैर्य और दृढ़ता से करें।
अपने शरीर के साथ ज़बरदस्ती बिल्कुल ना करें।
धीरज रखें। योग के लाभ महसूस होने मे वक़्त लगता है।
निरंतर योग अभ्यास जारी रखें।
प्राणायाम हमेशा आसन अभ्यास करने के बाद करें।
अगर कोई मेडिकल तकलीफ़ हो तो पहले डॉक्टर से ज़रूर सलाह करें।
अगर तकलीफ़ बढ़ने लगे या कोई नई तकलीफ़ हो जाए तो तुरंत योग अभ्यास रोक दें।
योगाभ्यास के अंत में हमेशा शवासन करें।

योग के प्रकार -

राज योग:
राज का अर्थ शाही है और योग की इस शाखा का सबसे अधिक महत्वपूर्ण अंग है ध्यान। इस योग के आठ अंग है, जिस कारण से पतंजलि ने eightका नाम रखा था अष्टांग योग। इसे योग सूत्र में पतंजलि ने उल्लिखित किया है। यह eight eight इस eight eight eight (शपथ लेना), नियम (आचरण का नियम या आत्म-अनुशासन), आसन, प्राणायाम (श्वास नियंत्रण), प्रत्याहार (इंद्रियों का नियंत्रण), धारण (एकाग्रता), ध्यान (मेडिटेशन), और समाधि (परमानंद या अंतिम मुक्ति)। राज योग आत्मविवेक और ध्यान करने के लिए तैयार व्यक्तियोंa को आकर्षित करता है। आसन राज योग का सबसे प्रसिद्ध अंग है, यहाँ तक कि अधिकतर लोगों के लिए योग का अर्थ ही है आसन। किंतु आसन एक प्रकार के योग का सिर्फ़ एक हिस्सा है। योग आसन अभ्यास से कहीं ज़्यादा  है
 
कर्म योग:
अगली शाखा कर्म योग या सेवा का मार्ग है और हम में से कोई भी इस मार्ग से नहीं बच सकता है। कर्म योग का सिद्धांत यह है कि जो आज हम अनुभव करते हैं वह हमारे कार्यों द्वारा अतीत में बनाया गया है। इस बारे में जागरूक होने से हम वर्तमान को अच्छा भविष्य बनाने का एक रास्ता बना सकते हैं, जो हमें नकारात्मकता और स्वार्थ से बाध्य होने से मुक्त करता है। कर्म आत्म-आरोही कार्रवाई का मार्ग है। जब भी हम अपना काम करते हैं और अपना जीवन निस्वार्थ रूप में जीते हैं और दूसरों की सेवा करते हैं, हम कर्म योग करते हैं

भक्ति योग:
भक्ति योग भक्ति के मार्ग का वर्णन करता है। सभी के लिए सृष्टि में परमात्मा को देखकर, भक्ति योग भावनाओं को नियंत्रित करने का एक सकारात्मक तरीका है। भक्ति का मार्ग हमें सभी के लिए स्वीकार्यता और सहिष्णुता पैदा करने का अवसर प्रदान करता है। 
 
ज्ञान योग:
अगर हम भक्ति को मन का योग मानते हैं, तो ज्ञान योग बुद्धि का योग है, ऋषि या विद्वान का मार्ग है। इस पथ पर चलने के लिए योग के ग्रंथों और ग्रंथों के अध्ययन के माध्यम से बुद्धि के विकास की आवश्यकता होती है। ज्ञान योग को सबसे कठिन माना जाता है और साथ ही साथ सबसे प्रत्यक्ष। इसमें गंभीर अध्ययन करना होता है और उन लोगों को आकर्षित करता है जो बौद्धिक रूप से इच्छुक हैं।


योग कब करें या योग करने का सही समय क्या है? 

सुबह सूर्योदय से पहले एक से दो घंटे योग के लिए सबसे अच्छा समय है। अगर सुबह आपके लिए मुमकिन ना हो तो सूर्यास्त के समय भी कर सकते हैं। इसके अलावा इन बातों का भी ख़ास ध्यान रखें:

अगर दिन का कोई समय योग के लिए निर्धारित कर लें, तो यह उत्तम होगा।
सब आसन किसी योगा मैट या दरी बिछा कर ही करें।
आप योग किसी खुली जगह जैसे पार्क में कर सकते हैं, या घर पर भी। बस इतना ध्यान रहे की जगह ऐसी हो जहाँ आप खुल कल साँस ले सकें।


योगाभ्यास शुरू करने से पहले सही मानसिक स्थिति क्या है? - what's the proper condition before beginning Yoga follow in Hindi?

योग आसन हमेशा मन को शांतिपूर्ण अवस्था में रख कर किए जाने चाहिए। शांति और स्थिरता के विचार के साथ अपने मन को भरें और अपने विचारों को बाहारी दुनिया से दूर कर स्वयं पर केंद्रित करें। सुनिश्चित कर लें कि आप इतने थके ना हों कि आसन पर ध्यान केंद्रित करने में असमर्थ हों अगर थकान ज़्यादा हो तो केवल रिलैक्स करने वाले आसन ही करें।

Post updated on:  Oct 30, 2021 2:28:43 AM

दिवाली की सफाई-

दिवाली का त्यौहार हिंदुओं का मुख्य त्यौहार होता है.इस दिन मां लक्ष्मी जी की पूजा आराधना की जाती है.कहते हैं,माँ लक्ष्मी केवल उन घरों में ही प्रवेश करती है जहां सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है.इसी कारण दिवाली के पहले हर घर में साफ सफाई की जाती है.दीवारों को नए रंगों से रंगा जाता है.घर का सारा कबाड़ बाहर निकाल दिया जाता है और नई वस्तुओं की खरीदी की जाती है.

दशहरे के बाद से ही हर घर में सफाई का दौर शुरू हो जाता है.घर के सभी सदस्य इस काम में जुट जाते हैं.घर की सारी पुरानी अनावश्यक चीजों को बाहर निकालकर कबाड़ में दे दिया जाता है और घर के हर कोने की सफाई की जाती है. घर की दीवारों को नए रंगों से रंगा जाता है.नए सामानों की खरीदी कर पूरे घर को सजाया जाता है.घर के द्वार पर पर रंग बिरंगे तोरण लगाए जाते हैं,आंगन में रंगोली सजाई जाती है.दीयों,मालाओं व झालरों से सजावट की जाती है.हर एक की चाहत होती है कि मां लक्ष्मी उनके घर में प्रवेश करे,इसलिए घर को मंदिर की तरह स्वच्छ और पवित्र बनाया जाता है.

दिवाली का त्योहार अक्टूबर-नवम्बर महीने में आता है.मौसम परिवर्तन के कारण कई बीमारियां उत्पन्न हो सकती है.यही वजह है कि दिवाली पर घर के भीतर और बाहर स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है.



दीपावली से पहले घर की साफ सफाई करते वक्त हम कई बार कुछ पुरानी चीजों को दोबारा संभाल कर रख लेते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन पुरानी चीजों से आपका मोह, घर में नकारात्मक ऊर्जा संचार करता है और सकारात्मकता  कम करता है। 


लक्ष्मी की कृपा वहीं होती है जहां स्वच्छता रहती है। आपको इस पर्व से पहले अपने घर से कुछ अनावश्यक और बेकार वस्तुओं को बाहर निकाल देना चाहिए ताकि आप भी संपन्नाता के इस पर्व पर सौभाग्य पा सकें।

दिवाली पर घर की सफाई का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि जिस घर में स्वच्छता रहती है लक्ष्मी का आगमन वहीं होता है। यह अवसर है जबकि आप अपने घर के कचरे और कबाड़ को बाहर करें। प्रतीकात्मक ही है कि भारतीय संस्कृति में झाड़ू को लक्ष्मी का रूप माना गया है।

यानी जहां स्वच्छता है वहीं लक्ष्मी है। जिस तरह लक्ष्मी का आगमन जीवन की दरिद्रता को दूर करता है उसी तरह झाड़ू से हम अपने घर का कचरा बुहार सकते हैं। चूंकि यह पर्व मां लक्ष्मी की आराधना का पर्व है इसलिए इसमें स्वच्छता का विशेष महत्व है।

दिवाली की सफाई करते हुए आपको अपने घर में पड़ी रद्दी, टूटे खिलौने, पुराने जूते-चप्पल, पुराने कपड़े बाहर कर देना चाहिए। आश्विन पूर्णिमा से दीपावली तक का समय बहुत ही ऊर्जावान होता है और इस दौरान धन की देवी लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए किए जाने वाले उपाय विशेष रूप से फलदायी होते हैं। इस समय अगर आप स्वच्छता के लिए प्रयास करेंगे तो धन की देवी लक्ष्मी आपसे प्रसन्न होगी।

ये पुरानी और अनुपयोगी चीजें न केवल सुंदरता खराब करती है बल्कि ये वास्तुदोष भी पैदा करती हैं। घर में अगर पुरानी और बेकार चीजें पड़ी रहती हैं तो वे सौभाग्य को घर के भीतर आने से रोक देती हैं। परिवार में तब आर्थिक समस्याएं आती हैं और भाग्य रूठ जाता है।

इस दिवाली पर लक्ष्मी पूजन से पहले अच्छे से सफाई करें। दीपावली पर साफ-सफाई का का वैज्ञानिक महत्व भी है। वर्षा ऋतु के समय पूरा वातावरण कीट-पतंगों से भर जाता है। दीपावली के पहले साफ-सफाई करने से आस-पास का क्षेत्र साफ-सुथरा हो जाता है। घरों की पुताई करने से कई प्रकार के कीड़े-मकोड़े और मच्छर नष्ट हो जाते हैं। इस तरह दिवाली पर सफाई हमारे स्वास्थ्य के लिहाज से भी बहुत जरूरी है।


-अगर आपके घर में टूटा हुआ दर्पण है तो वास्तु के अनुसार वह आपके परिवार के लिए नकारात्मक ऊर्जा पैदा करता है। तब परिवार के सदस्यों को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है। इस दिवाली अगर घर में टूटा कांच या कांच की वस्तुएं हों तो उनका निपटारा सबसे पहले करें।

-बंद और खराब घड़ी घर में कदापि न रखें क्योंकि वे दुर्भाग्य लाती हैं। घर में बंद घड़ी होने पर समय पर कोई कार्य पूरा नहीं होता है और कार्य संपन्नाता में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। जिन घड़ियों को सुधारा जा सकता है उन्हें सुधरवा लें अन्यथा उन्हें कचरे के हवाले करें।

-घर का मुख्य द्वार टूटा-फूटा नहीं होना चाहिए। उसे ठीक करवा लें। अगर मुख्य द्वार का प्लास्टर उखड़ गया हो तो उसे भी दिवाली से पहले ठीक करवा लेना चाहिए। घर के मुख्य द्वार पर अगर आप पुष्पमाला लगाते हैं तो उसे रोज बदलना चाहिए। पुरानी मालाओं को द्वार से उतार दें।


-दिवाली से पहले आपको घर के पूजास्थल या मंदिर की सफाई भी अच्छे से करना चाहिए। पूजास्थल में काफी समय से रखी पूजन सामग्री का निपटान करके आपको दिवाली पर नई सामग्री खरीदना चाहिए।

-दिवाली की सफाई करते हुए इस बात का ध्यान भी रखना चाहिए कि पिछली दिवाली के बचे हुए दीयों से इस दिवाली रोशनी न करें। इस दिवाली के लिए बाजार से नए दीये खरीदें।

-घर के मुख्य द्वार के एकदम निकट चप्पल-जूतों का स्टैंड या पादुकाएं उतारने की जगह बिल्कुल न हो। पादुकाएं उतारने की व्यवस्था घर के बाहर ही होना चाहिए, घर के भीतर नहीं। ताकि बैक्टीरिया भीतर न आने पाएं।

-घर का मुख्य द्वार अगर लोहे का है तो उन पर रंग-रोगन करवाना चाहिए और स्वस्तिक बनाना चाहिए ताकि समृद्धि सीधे घर में प्रवेश करे। स्वस्तिक आमंत्रण चिह्न है।

-दिवाली पर घर में मौजूद गमलों में भी कटाई-छंटाई करना चाहिए और उनका रंग-रोगन करना चाहिए।

-दिवाली से पहले इस बात का प्रयास भी करना चाहिए कि अगर आप पर कोई कर्ज या उधार है और आप उसे सहजता से लौटा सकते हैं तो आपको लौटना चाहिए। शास्त्र अनुसार जिस घर पर कर्ज का बोझ रहता है लक्ष्मीजी उस घर में जाना पसंद नहीं करती हैं।

-घर की छत पर जमा कचरा-कूडा इस समय साफ कर देना चाहिए और छत पर जमा अनावश्यक वस्तुओं को कचरे में दे देना चाहिए। इससे नकारात्मकता दूर होती है।

-दिवाली से पहले दरवाजे या खिड़कियों के शीशे या कांच अगर धुंधले हो गए हों तो उन्हें बदलवा देना चाहिए क्योंकि धुंधले कांच से घर में प्रकाश और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीं हो पाता है।

-घर में बिस्तरपेटी के अंदर अगर पुराने कपड़े और पुराना बिस्तर हो तो उसे भी दिवाली के पहले साफ कर लेना चाहिए। इससे नकारात्मकता बीमारी पैदा होती है। कम से कम उन्हें धूप तो दिखा ही लें।

-कोशिश कीजिए कि इस दिवाली से आप अपने घर में सभी चीजों को एक नियत स्थान पर रखेंगे। जिस व्यक्ति के घर में सामान बिखरा रहता है उसे कई प्रकार के मानसिक, आर्थिक और पारिवारिक तनाव का सामना करना पड़ता है। इससे घर में नकारात्मक प्रभाव बढ़ता है और आपसी मनमुटाव भी होता है।

Post updated on:  Oct 30, 2021 2:28:11 AM

मीराबाई (1498-1546) 
सोलहवीं शताब्दी की एक कृष्ण भक्त और
कवियत्री थीं।उनकी कविता कृष्ण भक्ति के रंग में रंग कर और गहरी हो जाती है। मीरा बाई ने कृष्ण भक्ति के स्फुट पदों की रचना की है। मीरा कृष्ण की भक्त हैं। उनके गुरु रविदास जी थे तथा रविदास जी के गुरु रामानंद जी थे



मीराबाई का जन्म सन 1498 ई. में पाली के कुड़की गांव में दूदा जी के चौथे पुत्र रतन सिंह के घर हुआ। ये बचपन से ही कृष्णभक्ति में रुचि लेने लगी थीं। मीरा का विवाह मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार में हुआ। उदयपुर के महाराजा भोजराज इनके पति थे जो मेवाड़ के महाराणा सांगा के पुत्र थे। विवाह के कुछ समय बाद ही उनके पति का देहान्त हो गया। पति की मृत्यु के बाद उन्हें पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया, किन्तु मीरा इसके लिए तैयार नहीं हुईं। मीरा के पति का अंतिम संस्कार चित्ततोड़ में मीरा की अनुपस्थिति में हुआ। पति की मृत्यु पर भी मीरा माता ने अपना श्रृंगार नहीं उतारा, क्योंकि वह गिरधर को अपना पति मानती थी
वे विरक्त हो गईं और साधु-संतों की संगति में हरिकीर्तन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगीं। पति के परलोकवास के बाद इनकी भक्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई। ये मंदिरों में जाकर वहाँ मौजूद कृष्णभक्तों के सामने कृष्णजी की मूर्ति के आगे नाचती रहती थीं। मीराबाई का कृष्ण-भक्ति में नाचना और गाना राज परिवार को अच्छा नहीं लगता था। उन्होंने कई बार मीराबाई को विष देकर मारने की कोशिश की। घर वालों के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान होकर वह द्वारका और वृन्दावन गई। वह जहाँ जाती थी, वहाँ लोगों का सम्मान मिलता था। लोग उन्हें देवी के जैसा प्यार और सम्मान देते थे। मीरा का समय बहुत बड़ी राजनैतिक उथल-पुथल का समय रहा है। बाबर का हिंदुस्तान पर हमला और प्रसिद्ध खानवा का युद्ध उसी समय हुआ था। इन सभी परिस्थितियों के बीच मीरा का रहस्यवाद और भक्ति की निर्गुण मिश्रित सगुण थे।
मेरी दृष्टि में श्री राधा रानी के बाद भगवान श्री कृष्ण की कोई प्रेयसी है तो सिर्फ मीरा बाई ही है। गोपियाँ भी प्रेम की पराकाष्ठा है लेकिन मीरा बाई तो इस कलयुग में भगवान की पत्नी कहलाती है।

संत महात्मा बताते हैं कि मीराबाई श्री कृष्ण के समय की एक गोपी थी।
भगवान कृष्ण को पाने वाले लोग कहते हैं हमें भगवान मिलते नहीं हैं, भगवान हमें दर्शन देते नहीं हैं जबकि मीरा बाई जी को देते हैं
मीरा बाई जी कहती हैं? मेरे तो गिरधर गोपाल, दुसरो न कोय।
हम सभी भगवान से कह देते हैं प्रभु आप हमारे हैं लेकिन इसकी दूसरी पंक्ति हम नहीं कह पाते कि प्रभु आपके अलावा हमारा और कोई भी नहीं है। सिर्फ आप ही हमारे हैं। हम पत्नी को भी अपना माने बैठे हैं, पति को भी, बच्चों को भी, गर्लफ्रेंड, बॉयफ्रेंड, और न जाने किस किस को अपना कहते हैं। क्या वे वास्तव में अपने हैं?
मीरा बाई ने तो कह दिया मेरे तो सिर्फ गिरधर गोपाल जी हैं। दूसरा कोई भी नहीं। जिस दिन हमारे ह्रदय में इस तरह सच्चा भाव आएगा यहीं मानना भगवान खुद ही आपको अपनी पलकों पर बैठ लेंगे।
मीराबाई की भक्ति संपादित करें
भारत अपनी संस्कृति के लिए पूरे विश्व में यूं ही इतना विख्यात नहीं है. भारतभूमि पर ऐसे कई संत और महात्मा हुए हैं जिन्होंने धर्म और भगवान को रोम-रोम में बसा कर दूसरों के सामने एक आदर्श के रुप में पेश किया है. मोक्ष और शांति की राह को भारतीय संतों ने सरल बना दिया है. भजन और स्तुति की रचनाएं कर आमजन को भगवान के और समीप पहुंचा दिया है. ऐसे ही संतों और महात्माओं में मीराबाई का स्थान सबसे ऊपर माना जाता है. मीराबाई के बालमन में कृष्ण की ऐसी छवि बसी थी कि यौवन काल से लेकर मृत्यु तक मीरा बाई ने कृष्ण को ही अपना सब कुछ माना.  बचपन से ही वे कृष्ण-भक्ति में रम गई थीं. 



मीराबाई का कृष्ण प्रेम बचपन की एक घटना - 

की वजह से अपने चरम पर पहुंचा था. मीराबाई के बचपन में एक दिन उनके पड़ोस में किसी बड़े आदमी के यहां बारात आई थी. सभी स्त्रियां छत से खड़ी होकर बारात देख रही थीं. मीराबाई भी बारात देख रही थीं, बारात को देख मीरा ने अपनी माता से पूछा कि मेरा दूल्हा कौन है? इस पर मीराबाई की माता ने कृष्ण की मूर्ति के तरफ इशारा कर कह दिया कि वही तुम्हारे दुल्हा हैं. यह बात मीरा बाई के बालमन में एक गांठ की तरह बंध गई. बाद में मीराबाई का विवाह महाराणा सांगा के पुत्र भोजराज से कर दिया गया. इस शादी के लिए पहले तो मीराबाई ने मना कर दिया पर जोर देने पर वह फूट-फूट कर रोने लगीं और विदाई के समय कृष्ण की वही मूर्ति अपने साथ ले गईं जिसे उनकी माता ने उनका दुल्हा बताया था. मीराबाई ने लज्जा और परंपरा को त्याग कर अनूठे प्रेम और भक्ति का परिचय दिया  मीराबाई कृष्ण की भक्ति में इतना खो जाती थीं कि भजन गाते-गाते वह नाचने लगती थीं. मीरा की महानता और उनकी लोकप्रियता उनके पदों और रचनाओं की वजह से भी है. ये पद और रचनाएं राजस्थानी, ब्रज और गुजराती भाषाओं में मिलते हैं. हृदय की गहरी पीड़ा, विरहानुभूति और प्रेम की तन्मयता से भरे हुए मीरा के पद हमारे देश की अनमोल संपत्ति हैं.  आंसुओं से गीले ये पद गीतिकाव्य के उत्तम नमूने हैं.  मीराबाई ने अपने पदों में श्रृंगार और शांत रस का प्रयोग विशेष रुप से किया है. भावों की सुकुमारता और निराडंबरी सहजशैली की सरसता के कारण मीरा की व्यथासिक्त पदावली बरबस सबको आकर्षित कर लेती हैं.  मीराबाई ने चार ग्रंथों की रचना की .बरसी का मायरा, गीत गोविंद टीका, राग गोविंद और राग सोरठ के पद मीरबाई द्वारा रचे गए ग्रंथ हैं. इसके अलावा मीराबाई के गीतों का संकलन "मीराबाई की पदावली' नामक ग्रन्थ में किया गया है. कहा जाता है कि मीराबाई रणछोड़ जी में समा गई थीं. मीराबाई की मृत्यु के विषय में किसी भी तथ्य का स्पष्टीकरण आज तक नहीं हो सका है. मीराबाई ने भक्ति को एक नया आयाम दिया है. एक ऐसा स्थान जहां भगवान ही इंसान का सब कुछ होता है. दुनिया के सभी लोभ उसे मोह से विचलित नहीं कर सकते. एक अच्छा-खासा राजपाट होने के बाद भी मीराबाई वैरागी बनी रहीं. मीराजी की कृष्ण भक्ति एक अनूठी मिसाल रही है.
मीरा के कई पद हिन्दी फ़िल्मी गीतों का हिस्सा भी बने।
वे बहुत दिनों तक वृन्दावन (मथुरा, उत्तर प्रदेश) में रहीं और फिर द्वारिका चली गईं। जहाँ संवत 1560 ई. में वे भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति में समा गईं।



मीराबाई की मृत्यु-
जब उदयसिंह राजा बने तो उन्हें यह जानकर बहुत निराशा हुई कि उनके परिवार में एक महान भक्त के साथ कैसा दुर्व्यवहार हुआ। तब उन्होंने अपने राज्य के कुछ ब्राह्मणों को मीराबाई को वापस लाने के लिए द्वारका भेजा। जब मीराबाई आने को राजी नहीं हुईं तो ब्राह्मण जिद करने लगे कि वे भी वापस नहीं जायेंगे। उस समय द्वारका में ?कृष्ण जन्माष्टमी? आयोजन की तैयारी चल रही थी। मीराबाई ने कहा कि वे आयोजन में भाग लेकर चलेंगी। उस दिन उत्सव चल रहा था। भक्तगण भजन में मग्न थे। मीरा नाचते-नाचते श्री रणछोड़राय जी के मन्दिर के गर्भग्रह में प्रवेश कर गईं और मन्दिर के कपाट बन्द हो गये। जब द्वार खोले गये तो देखा कि मीरा वहाँ नहीं थी। उनका चीर मूर्ति के चारों ओर लिपट गया था और मूर्ति अत्यन्त प्रकाशित हो रही थी। मीरा मूर्ति में ही समा गयी थीं। मीराबाई का शरीर भी कहीं नहीं मिला। उनका उनके प्रियतम प्यारे से मिलन हो गया था।
जिन चरन धरथो गोबरधन गरब- मधवा- हरन।।
दास मीरा लाल गिरधर आजम तारन तरन

🙏

Post updated on:  Oct 25, 2021 5:50:42 PM

            करवा चौथ 

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखती हैं. इस साल ये व्रत twenty four twenty four 2021 दिन रविवार को रखा जाएगा पूजा की तैयारी के बाद इंतजार रहता है चंद्रोदय का. करवा चौथ का चांद ऐसे में सुहागिनों को खूब इंतजार कराता है.  

चांद दिखने का समय हर जगह के लिए अलग-अलग होता है. कहीं कुछ समय पहले चांद दिखाई देने लगता है, तो कहीं पर थोड़ा इंतजार भी कराता है.

Karwa Chauth 2021 Mehendi Latest Design:  सुहागिन महिलाओं के लिए करवा चौथ के व्रत का खास महत्व होता है। महिलाएं इस दिन का इंतेजार पूरे साल करती हैं। इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं।  इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र की कामना के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और रात में चंद्रोदय के बाद पूजा कर अपना व्रत खोलती है. इस व्रत में सबसे जरूरी होती है मेहंदी (Karva Chauth straightforward Mehendi). करवा चौथ की मेहंदी के लिए महिलाओं में बहुत उत्साह होता है. इस करवा चौथ (Karwa Chauth Ke Aasan Designs) अगर आप मेहंदी की लेटेस्ट डिजाइंस ढूंढ रही हैं तो इन तस्वीरों से कुछ आइडिया ले सकती हैं. आज हम करवा चौथ करने वाली महिलाओं के लिए मेंहदी की लेटेस्ट और आसान डिजाइन बताने जा रहे हैं. आइए देखते हैं करवा चौथ पर 2021 के लेटेस्ट डिजाइन्स- (Karwa Chauth Mehendi Latest Designs)







यहां हम आपके लिए लाएं है करवा चौथ व्रत की कथा: 

Karva Chauth Vrat katha in hindi: एक ब्राह्मण के सात पुत्र थे और वीरावती नाम की इकलौती पुत्री थी। सात भाइयों की अकेली बहन होने के कारण वीरावती सभी भाइयों की लाडली थी और उसे सभी भाई जान से बढ़कर प्रेम करते थे. कुछ समय बाद वीरावती का विवाह किसी ब्राह्मण युवक से हो गया। विवाह के बाद वीरावती मायके आई और फिर उसने अपनी भाभियों के साथ करवाचौथ का व्रत रखा लेकिन शाम होते-होते वह भूख से व्याकुल हो उठी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है। लेकिन चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।


वीरावती की ये हालत उसके भाइयों से देखी नहीं गई और फिर एक भाई ने पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा लगा की चांद निकल आया है। फिर एक भाई ने आकर वीरावती को कहा कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखा और उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ गई।उसने जैसे ही पहला टुकड़ा मुंह में डाला है तो उसे छींक आ गई। दूसरा टुकड़ा डाला तो उसमें बाल निकल आया। इसके बाद उसने जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश की तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिल गया।

उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं। एक बार इंद्र देव की पत्नी इंद्राणी करवाचौथ के दिन धरती पर आईं और वीरावती उनके पास गई और अपने पति की रक्षा के लिए प्रार्थना की। देवी इंद्राणी ने वीरावती को पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से करवाचौथ का व्रत करने के लिए कहा। इस बार वीरावती पूरी श्रद्धा से करवाचौथ का व्रत रखा। उसकी श्रद्धा और भक्ति देख कर भगवान प्रसन्न हो गए और उन्होंनें वीरावती सदासुहागन का आशीर्वाद देते हुए उसके पति को जीवित कर दिया। इसके बाद से महिलाओं का करवाचौथ व्रत पर अटूट विश्वास होने लगा।

इस व्रत को रखने के five नियम
 
 1. चंद्रोदय तक रखें व्रत : यह व्रत सूर्योदय से पहले से प्रारंभ हो जाता है। उसके पूर्व कुछ भी खा-पी सकते हैं। उसके बाद जब तक रात्रि में चंद्रोदय नहीं हो जाता तब तक जल भी ग्रहण नहीं करते हैं। यदि कोई स्वास्थय समस्या है तो जल पी सकते हैं। चन्द्र दर्शन के पश्चात ही इस व्रत का विधि विधान से पारण करना चाहिए। शास्त्र अनुसार केवल सुहागिनें या जिनका रिश्ता तय हो गया हो वही स्त्रियां ये व्रत रख सकती हैं। पत्नी के अस्वस्थ होने की स्थिति में पति ये व्रत रख सकते हैं।
 
2. शिव परिवार की पूजा : संध्या के समय चंद्रोदय से लगभग एक घंटा पूर्व शिव-परिवार (शिवजी, पार्वतीजी, गणेशजी और कार्तिकेयजी सहित नंदीजी) की पूजा की जाती है। इसके अवला चंद्रदेव की पूजा करना भी जरूरी है।


 3. पूर्व मुखी होकर करें पूजन : पूजन के समय देव-प्रतिमा का मुख पश्चिम की ओर होना चाहिए तथा महिला को पूर्व की ओर मुख करके बैठना चाहिए। इस व्रत के दौरान महिलाओं को लाल या पीले वस्त्र ही पहनना चाहिए। इस दिन पूर्ण श्रृंगार और अच्छा भोजन करना चाहिए।

 
4.कथा सुनना जरूरी : व्रत वाले दिन कथा सुनना बेहद जरूरी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि करवाचौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है, उनके घर में सुख, शान्ति,समृद्धि आती है और सन्तान सुख मिलता है। करवा चौथ व्रत की कथा सुनते समय साबूत अनाज और मीठा साथ में अवश्य रखें। इस दिन कहानी सुनने के बाद बहुओं को अपनी सास को बायना देना चाहिये।
 
5. छलनी में देखें चांद को : चंद्रमा का उदय होने के बाद सबसे पहले महिलाएं छलनी में से चंद्रमा को देखती हैं फिर अपने पति को, इसके बाद पति अपनी पत्नियों को लोटे में से जल पिलाकर उनका व्रत पूरा करवाते हैं। कुआंरी महिलाएं चंद्र की जगह तारों को देखती हैं। जब चंद्रदेव निकल आएं तो उन्हें देखने के बाद अर्घ्य दें।

Deepika  posted in Festival

Post updated on:  Oct 24, 2021 11:28:06 AM

आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। 

शरद पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ गरुड़ पर सवार होकर पृथ्वी लोक पर भ्रमण के लिए आती हैं। इस दिन मां लक्ष्मी घर-घर जाकर भक्तों पर कृपा बरसाती हैं। इस दिन प्रकृति मां लक्ष्मी का स्वागत करती हैं। कहते हैं कि इस रात को देखने देवतागण भी स्वर्ग से पृथ्वी पर आते हैं। 


धार्मिक कथाओं के अनुसार द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने शरद पूर्णिमा की रात में ही गोपियों के साथ रासलीला रचाई थी। मान्यता है कि आज भी शरद पूर्णिमा की रात्रि में श्रीकृष्ण गोपियों के साथ वृंदावन में रासलीला रचाते हैं।

सभी गोपियां कृष्ण जी को अपने पति के रूप में पाना चाहती थी ।
शरद पूर्णिमा के दिन कृष्ण और राधा जी की पूजा की जाती है इस दिन सभी प्रेमी और प्रेमिका चंद्रमा के दर्शन कर अपनी जोड़ी सलामत रहने की प्रार्थना करते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण की सभी लीलाओं को रास के नाम से जाना जाता है लेकिन केवल शरद पूर्णिमा की रात के नृत्य को महारास की पदवी प्राप्त है। बताया जाता है कि प्रेम और काम के देवता कामदेव की हठ पर ही भगवान श्रीकृष्ण ने महारास का आयोजन किया था। दरअसल कामदेव को अपनी शक्तियों पर बहुत घमंड था कि वह किसी को भी काम के प्रति आसक्त कर सकता है।
शिव को पार्वती की ओर किया था आकर्षित

दरअसल सती की मृत्यु के बाद भगवान शिव संसार की माया से मुक्त होकर लीन में बैठ गए थे। तब देवताओं के कहने पर ही कामदेव ने अपने बाण से ही माता पार्वती की ओर आकर्षित किया था। ध्यान भंग होने से भगवान शिव ने तीसरी आंख खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया। लेकिन कामदेव की पत्नी रति के विनती सुनकर कामदेव को फिर से अस्तित्व प्रदान किया।

कामदेव के घमंड को तोड़ने के लिए भगवान कृष्ण ने वृंदावन के जंगलों में महारास की। सबसे पहले कृष्ण ने बांसुरी से सभी गोपियों को बुलाया। सभी गोपियां आ भी गईं लेकिन वे सभी वासना रहित थीं। उनके मन सिर्फ कृष्ण को पाने की इच्छा थी। भगवान कृष्ण ने हजारों रूप रखकर सभी गोपियों के साथ नृत्य किया लेकिन एक क्षण के लिए भी मन में वासना का प्रवेश नहीं किया।


निधिवन (वृन्दावन) में तुलसी के पेड़ हैं जोड़ों में
निधिवन में तुलसी के पेड़ हैं और ये सामान्य तुलसी के पौधों जैसे नहीं हैं। तुलसी के इन पेड़ों की शाखाएं जमीन की ओर आती हैं। सबसे खास बात यह है कि यहां तुलसी के पेड़ जोड़ों में हैं। मान्यता है कि जब श्रीकृष्ण निधिवन में गोपियों संग रास रचाते हैं तो ये सभी पेड़ गोपियां बन जाती हैं और सुबह होते ही फिर तुलसी के पेड़ में बदल जाती हैं।

शरद पूर्णिमा पर मां महालक्ष्मी की विधिवत पूजा की जाती है। शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की रोशनी अमृत समान होती है। शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की रोशनी में बैठने से शारीरिक रोगों से मुक्ति मिलती है। श्वांस संबंधी बीमारी दूर होती है। शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्र दर्शन करने से नेत्र संबंधी रोग दूर हो जाते हैं। इस रात्रि खीर का भोग लगाकर आसमान के नीचे रखी जाती है। मां लक्ष्मी का पूजन करने के बाद चंद्र दर्शन किया जाता है। शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस रात्रि में जागरण करने और मां लक्ष्मी की उपासना से धन-धान्य की प्राप्ति होती है। मां लक्ष्मी की पूजा के दौरान उन्हें गुलाबी रंग के फूल और इत्र, सुंगध अर्पित करें। श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ, कनकधारा स्त्रोत का पाठ करें। इस दिन माता लक्ष्मी के साथ चंद्रदेव की विशेष पूजा की जाती है। मां लक्ष्मी को सफेद मिठाई अर्पित करें। शाम को श्रीराधा-कृष्ण की पूजा करें। उन्हें गुलाब के फूलों की माला अर्पित करें। मध्य रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य दें। शरद पूर्णिमा पर सात्विक भोजन करें। शरद पूर्णिमा की रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में राधा और गोपियों के साथ महारास रचाया था। इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है।

हम सभी शरद पूर्णिमा को बहुत ही उत्साह से मनाते हैं।

Post updated on:  Oct 24, 2021 11:27:44 AM

दिवाली क्यों मनाई जाती है? 

  दिवाली के दीप जले तो समझो बच्चों के दिलों में फूल खिले, फुलझड़ियां छूटी और पटाखे उड़े... क्यों न हो ऐसा? ये सब त्योहार का हिस्सा हैं, आनंद का स्रोत हैं।
 
दीप पर्व अथवा दिवाली क्यों मनाई जाती है? इसके पीछे अलग-अलग कहानियां हैं, अलग-अलग परंपराएं हैं। कहते हैं कि जब भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के पश्चात अयोध्या नगरी लौटे थे,तब उनकी प्रजा ने मकानों की सफाई की और दीप जलाकर उनका स्वागत किया। 
 
दूसरी कथा के अनुसार जब श्रीकृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध करके प्रजा को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई तो द्वारका की प्रजा ने दीपक जलाकर उनको धन्यवाद दिया। 

एक और परंपरा के अनुसार सतयुग में जब समुद्र मंथन हुआ तो धन्वंतरि और देवी लक्ष्मी के प्रकट होने पर दीप जलाकर आनंद व्यक्त किया गया। 



जो भी कथा हो, ये बात निश्चित है कि दीपक आनंद प्रकट करने के लिए जलाए जाते हैं... खुशियां बांटने का काम करते हैं।
 
भारतीय संस्कृति में दीपक को सत्य और ज्ञान का द्योतक माना जाता है, क्योंकि वो स्वयं जलता है, पर दूसरों को प्रकाश देता है। दीपक की इसी विशेषता के कारण धार्मिक पुस्तकों में उसे ब्रह्मा स्वरूप माना जाता है।
 
ये भी कहा जाता है कि 'दीपदान' से शारीरिक एवं आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है। जहां सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंच सकता है, वहां दीपक का प्रकाश पहुंच जाता है। दीपक को सूर्य का भाग 'सूर्यांश संभवो दीप:' कहा जाता है।


 घर की सुख-शांति के लिये तुलसी के समाने जलाएं घी का दीया 

कार्तिक मास में तुलसी जी के सामने रोज शाम को घी का दीपक जलाने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। यही नहीं ऐसा करने से घर की सुख-समृद्धि बनी रहती है। यदि घर पर कोई लंबे समय से बीमार है तो उसका भी स्‍वास्‍थ्‍य ठीक हो जाता है। दुख दूर होता है और अर्थ, काम और मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।

धार्मिक पुस्तक 'स्कंद पुराण' के अनुसार दीपक का जन्म यज्ञ से हुआ है। यज्ञ देवताओं और मनुष्य के मध्य संवाद साधने का माध्यम है। यज्ञ की अग्नि से जन्मे दीपक पूजा का महत्वपूर्ण भाग है। 


बच्चो, एक कहानी सुनो-
 जब सूर्य का जन्म हुआ, तब उसने संपूर्ण दिवस संसार को अपने प्रकाश से आलोकित किया। जैसे-जैसे उसके अस्त होने का समय समीप आने लगा, उसे ये चिंता होने लगी कि अब क्या होगा? उसके अस्त होने के पश्चात दुनिया में अंधकार फैल जाएगा। कौन मानव के काम आएगा? कौन उन्हें रास्ता दिखाएगा?
 
सहसा एक आवाज आई- आप चिंतित न हों। मैं हूं ना! मैं एक छोटा-सा दीपक हूं, पर प्रात:काल तक अर्थात आपके उदय होने तक मैं अपने सामर्थ्यभर संसार को प्रकाश देने का प्रयत्न करूंगा। 
 

दीपक का आरंभ कब हुआ? कहां हुआ? 
ये निश्चित रूप से कहना कठिन है। अनुमान है कि प्राचीन समय में जब मानव ने अग्नि की खोज की होगी, तभी दीपक अस्तित्व में आए होंगे। 
 
आरंभ में घास-फूस को बांधकर जलाया गया और प्रकाश प्राप्त किया गया। आग जल जाती थी तो जली हुई रखी जाती। मशाल के रूप में ये दीपक थे, 
जो प्रकाश देते थे। 
 
फिर मानव ने पत्थर और पत्‍थर की चट्टानों को खोदकर दीये बनाना आरंभ किया। गुफाओं में मूर्तियां एवं चित्र बनाने की प्रक्रिया में पत्थर के ये दीपक सहायक‍ सिद्ध हुए। भारत में अजंता, एलोरा तथा अन्य स्थानों पर गुफाओं में कला के अद्वितीय प्रदर्शन में पत्थर के दीये काम आए।
 
धीरे-धीरे मानव ने मिट्टी के दीपक बनाना सीख लिया। धीरे-धीरे जैतून, सरसों और शीशम का तेल उपयोग में लाया जाने लगा। सत्य तो ये है कि आज भी सर्वाधिक मिट्टी के दीपक ही प्रचलित हैं।
 
दीपक की यात्रा की अगली मंजिल थी धातु की खोज। सोना-चांदी, तांबा-पीतल आदि धातुओं को पिघलाकर विभिन्न आकारों के दीपक बनाए जाने लगे। छोटे से छोटे और बड़े से बड़े (6-7 फुट ऊंचे) दीपक तैयार किए जाने लगे। उन्हें संभालने के लिए पीतल की मूठ लगाई जाती थी।
 सुंदर नक्काशी वाले दीपक मंदिरों की छत में लगाए जाते थे। 
 
प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में विभिन्न प्रकार के दीयों का उल्लेख मिलता है। महाभारत में रात्रि के समय जब घटोत्कच से युद्ध हुआ तो दुर्योधन ने सैनिकों को हाथों में जलते हुए दीपक रखने का निर्देश दिया था।
 
मथुरा, पाटलीपुत्र (पटना), टेक्सिला (तक्षशिला, पाकिस्तान में), अवंतिका (उज्जैन) आदि में खुदाई के दौरान मिट्टी के दीपक प्राप्त हुए थे। 
 
हड़प्पा संस्कृति के दीपक बलोचिस्तान में मालनामी स्थान से प्राप्त हुए। वो मिट्टी से बने चौकोर दीपक थे। उनके चारों कोनों में बत्तियां रखने का स्थान था। मोहन-जोदड़ो में पाए गए दीपक गोलाकार थे। वहां मार्ग के दोनों ओर लगाए जाने वाले दीपक भी प्राप्त हुए थे। 
 
इनके अतिरिक्त मंदिर में आरती के समय उपयोग में आने वाले पंचमुखी और सप्तमुखी दीपक भी प्रचलन में थे। पूजा के समय दीपक 'अर्चना दीप' कहलाते थे। 
 
शयनकक्ष में 'निशि दीपक' प्रयुक्त होते थे। बंदरगाहों में मार्ग दिखाने वाले 'आकाश दीप' नाम से जाने जाते थे। पेड़ों पर लटकाए जाने वाले दीपकों का 'वृक्ष दीप' नाम था। इनमें अनेक टहनियां होती थीं। प्रत्येक टहनी पर दीपक और ऊपर भाग में किसी देवी-देवता की मूर्ति (केवल सिर) होता था। 
 
 भारत में पुणे (महाराष्ट्र) का केलकर संग्रहालय और ग्वालियर (मध्यप्रदेश) का प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम अपने दीपक संग्रह के लिए प्रसिद्ध है। महात्मा बुद्ध की माता श्री मायादेवी के शयनकक्ष में रखा रहने वाला लकड़ी के खंभे पर गांधार शैली में बना हुआ दीपक भारत का सबसे बड़ा दीपक है।
 
मिस्र देश के सम्राट क्लोरस के महल में एक इतना बड़ा दीपक था जिसका प्रकाश 
 
उस काल में ऐसे प्रतिभाशाली रासायनिक वैज्ञानिक मौजूद थे जिन्होंने बिना ऑक्सीजन, बिना तेल के जलने वाले दीपक बनाए, जो वर्षों तक जलते रहे। आधुनिक वैज्ञानिक ये मानते हैं कि सोडियम एंटिमनी, सोना, पारा, प्लेटिनम और गंधक मिलाकर वो रसायन तैयार किया जाता था।


दीपक जलाने से कई तरह के महत्व जुड़े हुए हैं, जो कि इस प्रकार हैं-
बिना दीपक जलाए पूजा करने से पूजा को असफल माना जाता है। इसलिए जब भी कोई पूजा की जाती है तो सबसे पहले दीपक को जलाया जाता है और दीपक जलाने के बाद ही पूजा को शुरू किया जाता है।

पूजा के बाद भी जलता रहना चाहिए दीपक

पूजा के दौरान आप जब भी दीपक जलाएं तो इस बात का ध्यान रखें की पूजा पूरी होने के बाद भी दीपक कई घंटों तक जलते रहना चाहिए। क्योंकि पूजा के तुरंत बाद दीपक का शांत हो जाना शुभ नहीं माना जाता है और दीपक जितनी देर तक जलता रहता है पूजा का लाभ उतना ही अधिक मिलता है।


अंधकार हटाए

दीपक की लौ काफी पवित्र होती है और इसकी लौ की रोशनी नकारात्मक ऊर्जा को घर से दूर रखती है और जीवन से हर प्रकार के अंधकार को हटाकर दोती है।

घी का दीपक होता है काफी शुभ

अग्नि पुराण में दीपक का महत्व बताते हुए लिखा गया है कि हमेशा घी का दीपक ही जलाना चाहिए। अग्नि पुराण में घी के अलावा किसी और चीज का दीपक पूजा के दौरान जलाना वर्जित माना गया है। दरअसल घी को काफी शुभ माना जाता है और पूजा के दौरान केवल शुभ चीजों का ही प्रयोग किया जाता है।

दीपक जलाने से जुड़े फायदे ?
दीपक जलाने से ना केवल पूजा सफल होती है बल्कि जीवन की कई परेशानियों से भी निजात मिल जाती है।


 दीपक जलाने के फायदे अनगिनत हैं और इसको जलाने से जुड़े कुछ फायदे इस प्रकार हैं-

1. किसी भी प्रकार का रोग लगने पर आप हर रोज एक तेल का दीपक सूर्य देव की मूर्ति के सामने जला दें। ऐसा करने से रोग से मुक्ति मिल जाएगी और आप एकदम सेहतमंद हो जाएगें।

2. घर के मुख्य दरवाजे के पास हर रोज तेल का दीपक जलाना शुभ माना जाता है और ऐसा करने से घर में सदा सुख-शांति बनी रहती है। हालांकि आप जब भी घर के मुख्य दरवाजे के पास दीपक जलाएं तो इस बात का ध्यान रखें की दीपक का मुंह हमेशा घर के अंदर की और ही हो।

3. जिन लोगों को अक्सर बुरे सपने आते हैं, वो लोग रात को सोने से पहले हनुमान जी के सामने एक पंचमुखी दीपक जला दें और हनुमान चालीसा का पाठ करें। दीपक से जुड़े इस उपाय को करने से बुरे सपने आना बंद हो जाएंगे।
दीपिका सिंह ने यह जानकारी सत्य के आधार पर लिखी है अगर इसमें त्रुटि मिलती है तो वह उसके लिए क्षमा प्रार्थी हैं।

                धन्यवाद! 


Post updated on:  Oct 21, 2021 6:39:46 AM

Home व्यंजन बनाने की विधियाँ, छोले आलू टिक्की चाट बनाने की विधि/ तरीका हिन्दी में Aloo Tikki Chole Chat Recipe/ Vidhi in Hindi
छोले आलू टिक्की चाट बनाने की विधि/ तरीका हिन्दी में Aloo Tikki Chole Chat Recipe/ Vidhi in Hindi

  बनाने की  Food Recipes/ Vidhi
आलू टिक्की छोला मीठी चटनी व् मसविधियाँलो के साथ Aloo Tikki Chola with Meethi Indian relish and Spices
चटपटी छोले आलू टिक्की चाट का सोच कर ही मुह में पानी आ जाता है। अगर हम छोले आलू टिक्की चाट घर पर ही बना ले तो कितना मज़ा आए। आप इसे आसानी से घर पर बना कर सबको हैरान कर सकती है। छोले आलू टिक्की चाट बनाना बहुत सरल है। तो इंतेजार किस बात का, बस इस विधि को देख कर घर में खाइए चटपटी छोले आलू टिक्की चाट
छोले आलू टिक्की चाट सामान चाहिए Ingredients for Aloo Tikki Chole Chat :-
Step one -छोले के लिए:-
500 five hundred five hundred
डेढ़ लीटर पानी।
छोला बनाने की विधि:-
कुक्कर को गैस पर तेज आँच पर रखे।
अब उसमें छोले, डेढ़ लीटर पानी
Hot Tip:- इस विधि से आपको छोले में सोडा की ज़रूरत नही पड़ती।
एक कड़ाही लीजिए और तेज आँच पर गैस पर रखे, तेल डालिए।
गरम होने पर हींग डालिए, गरम मसाला और जीरा डाले फिर प्याज़ डाले।
गैस धीमी आँच पर करे।
प्याज़ को लाल लाल भूनने दे, थोड़ी थोड़ी देर में चलाते रहे।
अब भूनी प्याज़ में लाल मिर्च पाउडर, धनिया पाउडर, हल्दी पाउडर, कटा हुआ टमाटर डाले
गैस धीमी आँच पर रखे।
कुक्कर खोलो और देखिए छोले अगर मुलायम नही हुए है तो आप 2-3 सिंटी और दे दे।

Boiled Chola उबले छोले
Boiled Chola उबले छोले
जब टमाटर भुन जाए उसमें छोले डाले, कटी हुई धनिया और मीरचा डाले और मिलाए।
Chola Masala छोला मसाला
Chola Masala छोला मसाला
अब छोले कुक्कर में डालें
गैस बंद करे और स्टीम में रहने दे।
ढक्कन खोले और छोले की खुश्बू का एहसास करे।
Chola छोलाChola छोला


आपका स्वादिष्ट छोला परोसने के लिए तैयार है ]

step 2- आलू टिक्की बनाने के लिए सामान:-
आलू टिक्की बनाने की विधि:-
आलू प्लेट में ले, उसे छीलें और हाथ से मींज ले/ कद्दूकस भी इस्तेमाल कर सकते है।
अब इसमें 1/4 छोटी चम्मच लाल मिर्च पाउडर, 1/4  छोटी चम्मच धनिया पाउडर
Hot Tip:- कोर्नफ्लौर का इस्तेमाल इसलिए करते है जिससे आलू छितरे न और टिक्की आराम से बन जाए।
अच्छे से मिलाए।
छोटी गोल गोल लोई बना ले।
अब एक तवा ले।
तेज़ आँच पर रखे।
अब चपटे करछुल से उसमें देसी घी डाले और तवे पर फैला दे।
उस पर आलू की लोईया रख दे।
Aloo Tikki on Tawa तवे पर टिक्की
Aloo Tikki on Tawa तवे पर टिक्की
आँच धीमें करे।
तवे वाली तरफ की लोई हल्की गुलाबी दिखेगी।
उन्हे पलटीए।
Tikki from different aspect aspect aspect aspect
जब दोनो तरफ लाल हो जाए तब टिक्की को हल्का सा दबाए।


जब तक टिक्की सिक रही है, आप दही मथे इसी तरह से दोनो तरफ सेके जब तक टिक्की कुरकुरी व लाल न हो।
  
छोले आलू टिक्की चाट परोसने की विधि:-

एक प्लेट में दो टिक्की रखे और उसपर छोला डालें।
आलू टिक्की Aloo Tikki
छोले टिक्की पर रखें place Chola on Tikki
अब उसपर दही और मीठी चटनी डालें।
छोले टिक्की पर दही डालकर
छोले आलू टिक्की मीठी चटनी व् मसलो के साथ Aloo Tikki Chola with Meethi Indian relish and Spices
लाल मिर्च पाउडर व् धनिया पाउडर उसपर बुर्के।
बारीक़ कटे हुए प्याज व् हरा धनिया डालें।
गरम परोसे। 
आपकी स्वादिष्ट आलू टिक्की छोले तैयार है।


Aloo Tikki Chola छोले आलू टिक्की

Preparation Time10M
Cook Time20M
Total Time30M

Thank You
By Deepika Singh

Deepika  posted in Cooking

Post updated on:  Oct 20, 2021 5:30:19 AM

1. हाल ही में खबरों में रही सेला सुरंग भारत के किस राज्य में स्थित है?



उत्तर - अरुणाचल प्रदेश

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में अरुणाचल प्रदेश में सेला सुरंग के अंतिम सफल विस्फोट में वर्चुअली भाग लिया। इस सुरंग का निर्माण जून, 2022 तक पूरा होने की उम्मीद है। सेला सुरंग के thirteen,000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर दुनिया की सबसे बड़ी दो लेन वाली सुरंग होने की उम्मीद है। इसका निर्माण कार्य सीमा सड़क संगठन (BRO) द्वारा किया जा रहा है। यह सुरंग सेला दर्रे से होकर जाती है और अरुणाचल प्रदेश के माध्यम से चीन की सीमा ten की दूरी 

2. WHO WHO WHO WHO WHO WHO WHO WHO WHO WHO (Henrietta Lacks) किस देश से हैं?

उत्तर - अमेरिका


विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख ने दिवंगत हेनरीटा लैक्स को महानिदेशक पुरस्कार से सम्मानित किया। वह एक अमेरिकी महिला हैं जिनकी कैंसर कोशिकाओं को 1950 के दशक के दौरान उनकी जानकारी के बिना लिया गया था। उन कोशिकाओं ने विशाल वैज्ञानिक आविष्कारों की नींव प्रदान की, जिसमें कोरोनावायरस के बारे में शोध भी शामिल है। हेनरीटा लैक्स के पहले दो अक्षरों से व्युत्पन्न ?हेला? (HeLa) सेल लाइन ने मानव पेपिलोमावायरस (HPV) टीकों के विकास में मदद की।

3. जीवाणु और वायरल संक्रमण की निगरानी के लिए जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा लांच किए गए संघ का नाम क्या है?

उत्तर - One Health

जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने हाल ही में देश में जूनोटिक और रोगजनकों के महत्वपूर्ण जीवाणु, वायरल और परजीवी संक्रमण की निगरानी के लिए ?वन हेल्थ? कंसोर्टियम लॉन्च किया है। इस परियोजना का उद्देश्य मौजूदा नैदानिक ​​परीक्षणों के उपयोग और उभरती हुई बीमारियों के प्रसार की निगरानी और समझने के लिए अतिरिक्त प्रक्रियाओं के विकास का अध्ययन करना है। वन हेल्थ कंसोर्टियम में डीबीटी-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल बायोटेक्नोलॉजी, हैदराबाद के नेतृत्व में twenty seven twenty seven twenty seven twenty seven

4. हाल ही में खबरों में रहा तवांग गदेन नामग्याल ल्हात्से (तवांग मठ) किस देश में स्थित है?

उत्तर - भारत


तवांग गदेन नामग्याल ल्हात्से (तवांग मठ), जो तिब्बती बौद्ध धर्म का दूसरा सबसे बड़ा मठ है, अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में स्थित है। भारत ने, उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू की हालिया अरुणाचल प्रदेश यात्रा पर चीन की आपत्ति को खारिज कर दिया है। चीन भारतीय नेताओं के अरुणाचल प्रदेश के दौरे को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा बताते हुए आपत्ति जताता रहा है। तवांग भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में एक रणनीतिक प्रवेश प्रदान करता है और तिब्बत और ब्रह्मपुत्र घाटी के बीच गलियारे में एक महत्वपूर्ण बिंदु है।

5. राष्ट्रपति तटरक्षक पदक किस सशस्त्र बल को प्रदान किया जाता है?

उत्तर- तटरक्षक बल



भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने भारतीय तटरक्षक कर्मियों को राष्ट्रपति तटरक्षक पदक और तटरक्षक पदक से सम्मानित किया है। twenty six twenty six, 1990 से हर साल गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर भारतीय तटरक्षक बल के कर्मियों को पुरस्कार दिए जा रहे हैं।

6. IPL 2021 के फाइनल मैच का ?मैन ऑफ द मैच (Man Of the Match)? का खिताब किसे मिला ?

उत्तर - फाफ डुप्लेसिस


Important Points

फाफ डुप्लेसिस चेन्नई सुपर किंग्स (CSK) के खिलाड़ी eighty six और इन्होंने फाइनल मैच eighty six eighty six eighty six (59गेंदों) में eighty six है.
IPL 2021 फाइनल फाफ डुप्लेसिस का 100वां मैच रहा है.
IPL 2021 prime GK ?
IPL 2021 का आयोजन- भारत और UAE
IPL 2021 का संस्करण- 14वां
IPL 2021 की विजेता- चेन्नई सुपरकिंग्स (CSK) /उपविजेता- कोलकाता नाईट राइडर्स
IPL 2021 ऑरेंज कैप विजेता- ऋतुराज गायकवाड़
IPL 2021 पर्पल कैप विजेता- हर्षल पटेल

7. ?BCCI? ने किसे टीम इंडिया के नए मुख्य कोच (Head coach) नियुक्त किया है ?

उत्तर. - राहुल द्रविड
Important Points

रवि शास्त्री के बाद भारत के पूर्व दिग्गज बल्लेबाज राहुल द्रविड़ को टीम इंडिया का नया हेड कोच नियुक्त किया गया है.
BCCI
भारत में क्रिकेट मैच BCCI रेगुलेट करता है.
Board of management for Cricket in Asian country
भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड
स्थापना - 1928
मुख्यालय - मुंबई
अध्यक्ष - सौरभ गांगुली
सचिव - जय शाह


अनुभवी खिलाड़ियों में से एक हैं, 1996 से वे इसके नियमित सदस्य रहें हैं। अक्टूबर 2005 में वे भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान के रूप में नियुक्त किये गए और सितम्बर 2007 में उन्होंने अपने इस पद से इस्तीफा दे दिया। १६ साल तक भारत का प्रतिनिधित्व करते रहने के बाद उन्होंने वर्ष २०१२ के मार्च में अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय क्रिकेट के सभी फॉर्मैट से सन्यास ले लिया।

राहुल द्रविड़अनुभवी खिलाड़ियों में से एक हैं, 1996 से वे इसके नियमित सदस्य रहें हैं। अक्टूबर 2005 में वे भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान के रूप में नियुक्त किये गए और सितम्बर 2007 में उन्होंने अपने इस पद से इस्तीफा दे दिया। १६ साल तक भारत का प्रतिनिधित्व करते रहने के बाद उन्होंने वर्ष २०१२ के मार्च में अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय क्रिकेट के सभी फॉर्मैट से सन्यास ले लिया।

राहुल द्रविड़


राहुल द्रविड़ GQ मेन ऑफ़ द ईयर 2012 अवॉर्ड्स के दौरान

व्यक्तिगत जानकारी 

पूरा नाम - राहुल शरद द्रविड़
जन्म.  - eleven eleven 1973 (आयु 48)
इंदौर, मध्य प्रदेश, भारत
उपनाम   - द वॉल, द ग्रेट वॉल, जैमी मिस्टर डिपेंडेबल 

कद.-1.78 seventy eight (5 फीट ten इंच)

बल्लेबाजी की शैली - दाहिने हाथ से बल्लेबाजी

गेंदबाजी की शैली - राइट आर्म ऑफ़ स्पिन

भूमिका  - बल्लेबाज़ और वैकल्पिक विकेटकीपर


Post updated on:  Oct 20, 2021 5:28:20 AM

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