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सूर्यपुत्र कर्ण
सुनो कहानी सूर्यपुत्र की, जिसे सारथिपुत्र बनना पड़ा,
सीखने विद्या धनुष?बाण की, वर्ण?व्यवस्था से लड़ना पड़ा;
किया वेश धारण ब्राह्मण का, परशुराम के पास चल पड़ा,
मांगी विद्या परशुराम की, जब परशुराम सब कुछ बांट रहा।


सीखी विद्या, कड़े इम्तिहान, महारथ हासिल करली उसने,
रणभूमि में पार्थ को हंफाया था जिसने;
जांघ पर रखकर सर, सो रहे थे परशुराम,
कहीं से एक भंवरा आया, करने कर्ण की विद्या तमाम।


काट रहा भंवरा कर्ण को, खून उसका बहता चला,
ऊंकार न भरी सूर्यपुत्र ने, भंवरे को वो सहता चला;
रक्तमय पैर देखकर, परशुराम को पता चला,
ब्राह्मण नही ये सारथिपुत्र है, जिसने परशुराम को छला।


यह मानकर परशुराम ने कर्ण को दिया श्राप बड़ा,
फंस जाएगा रथ कीचड़ में, परशुराम का क्रोध बढ़ा;
भूल गया वो विद्या सारी, जब सबसे ज्यादा काम पड़ा, 
आखिर सूर्यपुत्र को रणभूमि में पार्थ का सामना करना पड़ा।


पुत्र?मोह में अंधे इंद्र, आए थे ब्राह्मण का वेश लेकर,
दिल जीत लिया देवराज का, कवच और कुंडल दोनों देकर;
अमोघ लेकर लौटा कर्ण, अर्जुन को मार गिराने को,
किसे पता था भीमपुत्र निमित्त बनेगा, अर्जुन को बचाने को।


सामने कर्ण के पार्थ खड़ा है, और रथ का चक्र धंस गया,
माधव की लीला अपरंपार है, यहां कर्ण निहत्था फंस गया;
चक्र बाहर निकालने को, कर्ण को नीचे उतरना पड़ा, 
तभी सामने गांडीव पर अर्जुन का बाण सख्त चढ़ा;
निहत्थे कर्ण का वध हुआ, सूरज को भी रोना पड़ा,
ये थी कहानी सूर्यपुत्र की, जिसे सारथिपुत्र बनना पड़ा।

- Akash Macwan



Akash  posted in Story & poetry

Post updated on:  Aug 7, 2021 3:30:33 PM

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